सालों की निराशा, अधूरे ख्वाब और अटूट फैन सपोर्ट के बाद रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर (RCB) ने आखिरकार वो कर दिखाया जिसका हर फैन इंतज़ार कर रहा था—RCB जीत गई है। एक ऐसी टीम जो सालों से ट्रोल्स और उम्मीदों के बोझ तले थी, उसके लिए यह जीत सिर्फ एक ट्रॉफी नहीं, बल्कि एक इज़्ज़त और भरोसे की वापसी है।
इस पूरी यात्रा का सबसे बड़ा चेहरा हैं विराट कोहली। साल दर साल इस टीम के लिए अपना सब कुछ देने वाले विराट ने कभी साथ नहीं छोड़ा। उनकी आंखों में जुनून, दिल में टीम के लिए प्यार और हर मैच में जीत की भूख साफ दिखती थी। आज जब वो जीत की खुशी में मुस्कुरा रहे थे, हर क्रिकेट प्रेमी की आंखों में इमोशन्स थे।
RCB की ये जीत आंकड़ों की नहीं, वफ़ादारी, धैर्य और यकीन की जीत है। उन फैंस के लिए, जिन्होंने हर साल "इस साल कप हमारा है" कहकर खुद को तसल्ली दी।
आज सिर्फ बैंगलोर नहीं, हर RCB फैन का दिल जश्न मना रहा है।
इस साल सच में कप हमारा है।
Image Credit: BBC
भारतीय सिनेमा के समृद्ध कैनवस में यदि कोई नाम सबसे उज्जवल रूप में चमकता है, तो वह है यश चोपड़ा। "रोमांस के बादशाह" के रूप में मशहूर यश चोपड़ा ने अपनी कहानी कहने की अनोखी शैली, खूबसूरत दृश्यों, मधुर संगीत और भावनात्मक गहराई से बॉलीवुड को एक नया रूप दिया। उनके पांच दशकों से भी लंबे करियर ने हिंदी सिनेमा की दिशा ही बदल दी और दुनिया को प्रेम की एक नई सिनेमाई भाषा सिखाई।
आज, 26 सितंबर को हँसी की दुनिया की रानी, हमेशा मुस्कुराती और हँसी बाँटती अर्चना पूरण सिंह अपना 63वां जन्मदिन मना रही हैं। चार दशकों से अधिक लंबे अपने करियर में उन्होंने भारतीय टेलीविज़न और सिनेमा को अपनी ऊर्जा, हास्य और अनोखी आवाज़ से रोशन किया है। उनकी बेहतरीन कॉमिक टाइमिंग और गर्मजोशी भरे स्वभाव ने उन्हें एक ऐसे सितारे के रूप में स्थापित किया है, जो शोबिज़ की चमक-दमक में भी अपनी सच्चाई और मौलिकता को नहीं भूलीं।
फिल्म इंडस्ट्री में जहां उम्र बढ़ने के साथ महिलाओं को किनारे कर दिया जाता है, जहां अक्सर रूप रंग को प्रतिभा से ऊपर रखा जाता है, वहां नीना गुप्ता ने मानो पूरी व्यवस्था को पलट कर रख दिया है। एक समय पर उन्हें स्टीरियोटाइप किरदारों में बांध दिया गया था, लेकिन आज वे मिड-लाइफ क्रांति का चेहरा बन चुकी हैं। उन्होंने सिर्फ फिल्मों में वापसी नहीं की — बल्कि खुद को नया रूप दिया और उम्रदराज महिलाओं की छवि को फिर से परिभाषित किया। उनकी कहानी सिर्फ फिल्मों की नहीं है; ये साहसिक फैसलों, आत्मबल और उस आंतरिक विश्वास की कहानी है, जो एक ऐसी महिला के अंदर था जिसने दुनिया से मुंह मोड़ने के बावजूद खुद पर विश्वास नहीं खोया।
हिंदी सिनेमा की चकाचौंध के पीछे, खासकर 1970 और 1980 के दशक में, एक खामोश क्रांति चल रही थी। मुख्यधारा की फिल्मों की चमक-दमक से दूर, यथार्थ और मानवीय अनुभवों पर आधारित एक नई पीढ़ी की फिल्में उभर रही थीं। इस आंदोलन से जुड़ी कई प्रतिभाओं के बीच, दीप्ति नवल और फारूक शेख की जोड़ी कुछ अलग ही थी।
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