29 अगस्त को, भारत और दुनियाभर में फैले प्रशंसक साउथ इंडियन सिनेमा के सबसे चहेते और बहुमुखी सितारों में से एक — नागार्जुन अक्किनेनी का जन्मदिन मना रहे हैं। 1959 में जन्मे नागार्जुन साल 2025 में 66 साल के हो रहे हैं, लेकिन उनकी ऊर्जा, करिश्मा और स्क्रीन प्रेज़ेंस आज भी नई पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनी हुई है।
चाहे वो उनका अनोखा स्टाइल हो, गंभीर अभिनय हो या फिर उनकी चुंबकीय मौजूदगी — भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में उनका योगदान विशाल है। उन्होंने एक ऐसी पहचान बनाई है जिसमें परंपरा और आधुनिकता का मेल है — जो उन्हें न सिर्फ तेलुगु सिनेमा बल्कि बॉलीवुड में भी एक जाना-पहचाना नाम बनाता है।
एक विरासत, जो सितारे में बदली
नागार्जुन का जन्म मशहूर अभिनेता अक्किनेनी नागेश्वर राव (ANR) और अन्नपूर्णा अक्किनेनी के घर चेन्नई (तत्कालीन मद्रास) में हुआ। एक सिनेमा जगत की महान हस्ती के बेटे होने के नाते, नागार्जुन बचपन से ही फिल्मों के करीब रहे। उनका डेब्यू बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट फिल्म ‘सुदीगुंडालु’ (1967) में हुआ, जब वे सिर्फ आठ साल के थे।
हालाँकि उन्हें फिल्मी दुनिया विरासत में मिली, नागार्जुन ने अपनी पहचान खुद बनाने का रास्ता चुना। उन्होंने गिंडी कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक किया और फिर अमेरिका से ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग में मास्टर्स की पढ़ाई की। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था — और फिल्में उन्हें वापस भारत खींच लाईं।
एक सुपरस्टार का उदय
नागार्जुन ने बतौर लीड एक्टर अपने करियर की शुरुआत 1986 की फिल्म ‘विक्रम’ से की, जो हिंदी फिल्म ‘हीरो’ की रीमेक थी। फिल्म सफल रही और नागार्जुन एक उभरते हुए सितारे के रूप में पहचाने जाने लगे। लेकिन ‘गीतांजलि’ (1989) ने उन्हें सुपरस्टार बना दिया। मणिरत्नम के निर्देशन में बनी यह भावनात्मक प्रेम कहानी राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित हुई।
1990 के दशक से लेकर 2000 के दशक तक, उन्होंने एक से बढ़कर एक हिट फिल्में दीं — जैसे ‘शिवा’ (1989), ‘अन्नमय्या’ (1997), ‘निन्ने पेल्लादाता’ (1996), और ‘मनमधुडु’ (2002)। वे एक ऐसे अभिनेता बन गए जो रोमांस, एक्शन और आध्यात्मिक किरदारों में समान रूप से निपुण थे।
उनकी फिल्म ‘अन्नमय्या’ में संत और कवि अन्नमाचार्य का निभाया गया किरदार आज भी तेलुगु सिनेमा के इतिहास में सबसे यादगार प्रदर्शनों में गिना जाता है।
बॉलीवुड से भी रहा नाता
नागार्जुन ने हिंदी फिल्मों में भी अपनी छाप छोड़ी। राम गोपाल वर्मा द्वारा बनाई गई हिंदी फिल्म ‘शिवा’ से उन्होंने बॉलीवुड में कदम रखा। इसके बाद उन्होंने ‘क्रिमिनल’ (1995), ‘जख्म’ (1998), और ‘LOC कारगिल’ (2003) जैसी फिल्मों में काम किया और यह साबित किया कि भाषा की दीवारें उन्हें नहीं रोक सकतीं।
हालांकि उनकी जड़ें तेलुगु सिनेमा में हैं, लेकिन उनकी लोकप्रियता भारत के कोने-कोने और प्रवासी भारतीय समुदायों तक फैली हुई है।
अभिनेता से आगे: निर्माता, उद्यमी और मार्गदर्शक
नागार्जुन सिर्फ एक अभिनेता ही नहीं, बल्कि एक सफल निर्माता, टीवी होस्ट और बिजनेस मैन भी हैं। वे अन्नपूर्णा स्टूडियोज के सह-मालिक हैं, जो साउथ इंडिया के सबसे बड़े स्टूडियो में से एक है। साथ ही, उन्होंने अन्नपूर्णा इंटरनेशनल स्कूल ऑफ फिल्म एंड मीडिया की स्थापना की, जो आने वाली पीढ़ियों को फिल्म निर्माण की शिक्षा देता है।
टीवी पर उन्होंने ‘बिग बॉस तेलुगु’ जैसे शोज़ में होस्टिंग कर नई पीढ़ी के फैंस का दिल जीता।
इसके अलावा वे हॉस्पिटैलिटी और रियल एस्टेट जैसे क्षेत्रों में भी सक्रिय हैं और परोपकार के लिए भी जाने जाते हैं।
उम्र को मात देती शख्सियत
66 की उम्र में भी नागार्जुन वही जोश और आत्मविश्वास से भरे हैं। हाल की फिल्मों जैसे ‘मनम’ (2014) — जिसमें तीन पीढ़ियों के अक्किनेनी परिवार ने साथ काम किया — और ‘बंगाराजू’ (2022) में उन्होंने यह दिखा दिया कि वो अभी भी दर्शकों के चहेते हैं।
उनकी युवावस्था जैसी दिखने वाली काया, अनुशासित जीवनशैली और आध्यात्मिक सोच उन्हें और भी खास बनाती हैं। वे अक्सर शांति, फिटनेस और वर्तमान में जीने की बात करते हैं — यही बातें उन्हें पांच दशकों बाद भी विनम्र और प्रेरणादायक बनाए हुए हैं।
जन्मदिन का जश्न
हर साल 29 अगस्त को फैंस सोशल मीडिया पर हैशटैग्स जैसे #HappyBirthdayNagarjuna और #KingNagarjuna के साथ उनके लिए शुभकामनाएं भेजते हैं। इस साल भी सोशल मीडिया उनकी फिल्मों के वीडियो, संवाद और पोस्टर्स से गुलज़ार है।
उनका जन्मदिन न सिर्फ एक उत्सव है, बल्कि यह सोचने का मौका भी है कि कैसे उन्होंने भारतीय सिनेमा को आकार दिया और एक स्टार के रूप में उद्देश्यपूर्ण जीवन जिया।
नागार्जुन अक्किनेनी सिर्फ एक अभिनेता नहीं हैं — वे एक संस्था हैं। दशकों बाद भी, उन्होंने यह साबित कर दिया है कि प्रतिभा, विनम्रता और समय के साथ बदलाव अपनाना ही सच्ची सफलता की कुंजी है।
66वें जन्मदिन पर उनके फैंस का एक ही संदेश है:
"आप भले ही उम्र में आगे बढ़ रहे हों, लेकिन आपकी विरासत अमर है, किंग!"
नागार्जुन अक्किनेनी को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं — ईश्वर उन्हें लंबी उम्र, सुख-शांति और अद्भुत सिनेमा से भरपूर जीवन दे।
हिंदी सिनेमा की चकाचौंध के पीछे, खासकर 1970 और 1980 के दशक में, एक खामोश क्रांति चल रही थी। मुख्यधारा की फिल्मों की चमक-दमक से दूर, यथार्थ और मानवीय अनुभवों पर आधारित एक नई पीढ़ी की फिल्में उभर रही थीं। इस आंदोलन से जुड़ी कई प्रतिभाओं के बीच, दीप्ति नवल और फारूक शेख की जोड़ी कुछ अलग ही थी।
फिल्म इंडस्ट्री में जहां उम्र बढ़ने के साथ महिलाओं को किनारे कर दिया जाता है, जहां अक्सर रूप रंग को प्रतिभा से ऊपर रखा जाता है, वहां नीना गुप्ता ने मानो पूरी व्यवस्था को पलट कर रख दिया है। एक समय पर उन्हें स्टीरियोटाइप किरदारों में बांध दिया गया था, लेकिन आज वे मिड-लाइफ क्रांति का चेहरा बन चुकी हैं। उन्होंने सिर्फ फिल्मों में वापसी नहीं की — बल्कि खुद को नया रूप दिया और उम्रदराज महिलाओं की छवि को फिर से परिभाषित किया। उनकी कहानी सिर्फ फिल्मों की नहीं है; ये साहसिक फैसलों, आत्मबल और उस आंतरिक विश्वास की कहानी है, जो एक ऐसी महिला के अंदर था जिसने दुनिया से मुंह मोड़ने के बावजूद खुद पर विश्वास नहीं खोया।
आज, 26 सितंबर को हँसी की दुनिया की रानी, हमेशा मुस्कुराती और हँसी बाँटती अर्चना पूरण सिंह अपना 63वां जन्मदिन मना रही हैं। चार दशकों से अधिक लंबे अपने करियर में उन्होंने भारतीय टेलीविज़न और सिनेमा को अपनी ऊर्जा, हास्य और अनोखी आवाज़ से रोशन किया है। उनकी बेहतरीन कॉमिक टाइमिंग और गर्मजोशी भरे स्वभाव ने उन्हें एक ऐसे सितारे के रूप में स्थापित किया है, जो शोबिज़ की चमक-दमक में भी अपनी सच्चाई और मौलिकता को नहीं भूलीं।
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